ज्योति बिष्ट का पीएचडी के लिए चयन, पहाड की बेटियों को देगा हौंसला

देवाल (चमोली)। सीमांत जनपद चमोली के देवाल ब्लाक के देवसारी गांव की ज्योति बिष्ट का फ्रेडरिक शिलर यूनिवर्सटी जेना (येना), जर्मनी में पीएचडी में चयन के लिए हुआ है। आज ज्योति नें सात समंदर पार अपनी पीएचडी के लिए जर्मनी के लिए उडान भरी है। ज्योति की ये उडान भविष्य में पहाड की बेटियों के लिए हौंसला देगी। ज्योति का चयन आने वाले दिनों में पहाड की हजारों बेटियों के लिए प्रेरणास्रोत का कार्य करेगा और उनकी उम्मीदों को पंख लगायेगा।

हमारे सपनों को पूरा करने के लिए माता पिताजी नें अपने सपने देखना बंद कर दिये, बहन बनी पथ प्रदर्शक – ज्योति बिष्ट।

ज्योति की इस नये सफर की शुरुआत रेमन मैग्सेसे पुरूस्कार से सम्मानित वरिष्ठ पत्रकार रविश कुमार से एक यादगार मुलाकात से शुरू हुई। इस मुलाकात के दौरान रविश कुमार से मिली सराहना नें ज्योति के हौंसलो को नयी उडान दी। अपने सपनों को हकीकत में बदलने के लिए सात समंदर पार जर्मनी जाने से पहले ज्योति के चेहरे पर खुशी की झलक साफ देखी जा सकती है। ज्योति बिष्ट, सुदूरवर्ती पहाड के एक साधरण और मध्यमवर्गीय परिवार से है। उनके पिताजी मोहन सिंह बिष्ट सेवानिवृत अध्यापक हैं, जबकि मां दमयंती बिष्ट गृहणी है। ज्योति के दो भाई और वे दो बहनें हैं। बकौल ज्योति देवसारी गांव से यहां तक पहुंचने में मेरे जीवन में बहुत सारे लोगों का अहम योगदान रहा है। मेरे माता पिताजी नें मुझे सदैव आगे बढने की प्रेरणा दी और जीवन में ऊंचा मुकाम छूने का लक्ष्य दिया। मेरे माता पिताजी नें हमारे सपनों को पूरा करने के लिए अपने सपनों को देखना बंद कर दिया था। हमने उन्हें कभी घूमने जाते हुए या हम पर ध्यान देने के अलावा कुछ करते नहीं पाया। उन्हीं के त्याग और समर्पण का ये प्रतिफल है। मेरी बड़ी बहन और मेरे दोनो भाई अब तक के जीवन में पूरी तरह मेरे साथ रहे हैं, हम चारों भाई बहन आपस में काफी घुले मिले हैं ,जिस कारण हम खुल कर अपनी समस्याओं पर बात करते हैं। मेरा परिवार ही मेरी प्रेरणा है। मेरे पूरे परिवार ने मेरा हर कदम पर साथ दिया और भरोसा किया। मैनें स्कूली शिक्षा गांव से हर रोज 5 किलोमीटर पैदल चल कर देवाल से पूरी की। 12 वी के बाद मैंने गढ़वाल विश्वविद्यालय से स्नातक ( zoology, botany , chemistry) और स्नातकोत्तर (chemistry – organic chemistry specialisation) से किया, उसके पश्चात पी जी कॉलेज गोपेश्वर से बी एड की डिग्री प्राप्त की। बीएड के बाद मैं दिल्ली चली आई। दिल्ली में मेरी बड़ी बहन आरती जो की मुझसे एक साल बड़ी हैं पी एच डी कर रही है। मेरी बहन आरती मेरे लिए सबसे बडी मार्गदर्शक रही। उसनें हर छोटी छोटी चीजों को सिखाया, उसके तमाम गाइडेंस और एक्सपीरियंस मेरे बहुत काम आई। मेरी बहन चट्टान की तरह हर समय मेरे साथ खड़ी रही सीवी लिखने से लेकर इंटरव्यू के पूरे प्रोसेस के दौरान हर कदम पर वो साथ थी। आखिरकार एक साल की तैयारी करने के बाद पीएचडी के लिए इंटरव्यू दिया और उसमे मेरा चयन हुआ। मास्टर्स डिग्री में, मैं एसएफआई से जुड़ी और संगठन की वजह से ही जीवन में आगे बढ़ना और पढ़ना सीखा। एक स्पेशल थैंक्स उन व्यक्ति के लिए जिनके बिना जर्मनी तक के सफर की शुरुआत नही होती वो हैं निकिता वशिष्ठ, जिन्होंने पूरे वक्त मुझे गाइड और मोटिवेट करने का काम किया, वे स्वयं भी जर्मनी में पोस्टडॉक हैं। मुझे ट्रेनिंग देने वाले वैज्ञानिकों डाॅ असित पात्रा और डाॅ राजीव कुमार सर सहित अपने सभी गुरूजनो का आभार व्यक्त करती हूं जिन्होंने मुझे प्रोत्साहित किया और आशीर्वाद दिया। मुझे खुशी है आज यहां तक पहुंच पाई हूं। यहां तक पहुंचने के लिए बहुत मेहनत और संघर्ष करना पडता है। मैं उत्तराखंड की हर बेटी से कहना चाहती हूं की वो भी जीवन में हर सपने को देखे और उसे पूरा करने के लिए हरसंभव कोशिश करें। ज्योति पढाई के साथ साथ सामाजिक कार्यों, महिलाओं के अधिकार, बेहतर शिक्षा से लेकर छात्र-छात्राओं के अधिकारों के लिए सदैव संघर्षरत रही। एडवेंचर, वाल राइटिंग, पोस्टर, भाषण व संगठन निर्माण में भी ज्योति निपुण और पशु प्रेमी भी है।

ये है प्रतिष्ठित फ्रेडरिक-शिलर-विश्वविद्यालय जेना!

फ्रेडरिक-शिलर-विश्वविद्यालय जेना जर्मनी का ऐतिहासिक और प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में से एक है। इसकी नींव 1558 में पडी थी। आज, यह सबसे बड़ा उच्च शिक्षा संस्थान है। यह छात्रों के साथ-साथ दुनिया भर के वैज्ञानिकों को आकर्षित करता है। 18,000 से अधिक छात्र वर्तमान में जेना में विश्वविद्यालय में अध्ययन करते हैं, जबकि 2600 से अधिक छात्र अंतरराष्ट्रीय हैं, जो 100 से अधिक देशों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

चमोली के एक छोटे से गांव देवसारी से जर्मनी के प्रतिष्ठित फ्रेडरिक-शिलर-विश्वविद्यालय जेना तक का सफर महज ज्योति बिष्ट की सफलता भर का नहीं है बल्कि पहाड की हजारों बेटियों के सपनों का हकीकत में बदलना है। ज्योति बिष्ट ने पहाड की बेटियों को भरोसा दिलाया है कि वो भी अपने सपनों को हकीकत में बदल सकती हैं।

नाज है ऐसी बेटी पर।
बहुत बहुत बधाई ज्योति, सुनहरे भविष्य के लिए..

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